आज माँ के नव रूप में माँ सिद्धिधात्री का नवा रूप है, माँ ने आज पीले रंग के वस्त्र को धारण किया था , आज अंतिम दिन सभी के मन में उल्लास है , और क्यों ना हो इसी वजह से हमारा पूरा वर्ष निर्भर होता है, मैं नियमित से गीता पढ़ती हूँ...एक लाल रंग की छोटी सी श्री गीता जी मेरे पास हैं जिसमे संजय द्वारा उल्लेखित श्री कृष्ण का अर्जुन को उपदेश और हर अध्याय के बाद उस अध्याय का महात्म्य है, , पूरे १८ अध्याय को एक एक दिन दिन में पढ़ती हूँ, एक दिन अध्याय और उसके अगले दिन उसका महात्म्य ,,लेकिन आज तक लगा की पहली बार पढ़ रही हूँ,,,आज माँ के नव दिवस पर मैंने ११ वां अध्याय पढ़ा , जिसमे कृष्ण का विराट स्वरुप और अर्जुन की याचना उन्हें पुनः पूर्व रूप में देखने की, (भगवन आप तो पूर्व से भी पूर्व हो) कहने का तात्पर्य है की माँ का अंतिम रूप और श्री गीता के भगवान् के स्वरुप दोनों का संगम बहुत सुंदर लगा, मन और कर्म से आलसी हूँ लेकिन जब इन पवित्र शब्दों के संसर्ग में आती हूँ तो
अजीब सी अनुभूति का एहसास होता है...
आज माँ के जागरण में शिरकत करना है, माँ का प्रसाद पाना है , सब उन्ही की कृपा से संभव है,,,,,आप सबको भी माँ के नव रूपों का आशीर्वाद मिले,,,,,
जय माता दी,,,
अजीब सी अनुभूति का एहसास होता है...
आज माँ के जागरण में शिरकत करना है, माँ का प्रसाद पाना है , सब उन्ही की कृपा से संभव है,,,,,आप सबको भी माँ के नव रूपों का आशीर्वाद मिले,,,,,
जय माता दी,,,
.jpg)
.jpg)

