बुधवार, 15 मई 2013

आज अभी अबतक मन बोला

आज अभी अबतक मन बोला
बस ऐसे ही शब्दों का झोला
बाँध लिए फिरता है दिन भर
पैदल ही ना उड़न खटोला

सुबह सुलभ सी , बड़ी सुकोमल
हल्की सी डाली लहराती
रात स्वप्न में छोड़ के आयी
कल की एक उदास उदासी


अब तक मन भी भूल चुका है
नया पुष्प अंकुरित हुआ है
अब उसकी खुशबू की खातिर
मधु रस खोज में ब्यस्त हुआ है

काश ! कालिमा रंग ले आये
कुछ रंगों की आभा सी हो
स्वप्न सुनहले ना हो धुंधले
बाहर आ कर मुझसे खेले .


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