बुधवार, 15 मई 2013

नहीं अकेला हूँ मैं ,,,,,,,,

कौन कहता है की मैं अकेला हूँ 
क्या मेरे गिटार में आवाज नहीं ?
उसके बोल मुझसे बातें करते हैं 

जाने कितने स्वरों  को समेटा है इसमें 

इसमें लोगों का हुजूम छिपा है 
कोलाहल में सुकून छिपा है 
गुनगुनाहट और झंकार छिपी है
लेकिन इसमें मेरा अधिकार छिपा है 


ये गाता है मेरे इशारे पे 
लोग इसे देखते हैं 
और मैं इसे छेड़ता हूँ 
ह्रदय के तारों की तरह 

और फिर खुद बा खुद 
सब के सब सस्वर हो जाते है 
फिर मत कहना तुम 
की मैं अकेला हूँ

आज अभी अबतक मन बोला

आज अभी अबतक मन बोला
बस ऐसे ही शब्दों का झोला
बाँध लिए फिरता है दिन भर
पैदल ही ना उड़न खटोला

सुबह सुलभ सी , बड़ी सुकोमल
हल्की सी डाली लहराती
रात स्वप्न में छोड़ के आयी
कल की एक उदास उदासी


अब तक मन भी भूल चुका है
नया पुष्प अंकुरित हुआ है
अब उसकी खुशबू की खातिर
मधु रस खोज में ब्यस्त हुआ है

काश ! कालिमा रंग ले आये
कुछ रंगों की आभा सी हो
स्वप्न सुनहले ना हो धुंधले
बाहर आ कर मुझसे खेले .